(मंच के बीचों बीच एक मध्य आयु वाले व्यक्ति पर स्पॉट लाइट | वो दर्शकों को संबोधित करते हुए बोलता है )
मेरा नाम है नंदन बागची मैं पश्चिम बंगाल के वन विभाग में रेंज ऑफिसर के पद पर कार्य करता हूँ | इसके कारण मुझे प्रदेश के विभिन्न वन अंचलों में घूमना पड़ता है | 2007 के फरवरी महीने में मुझे बीरभूम के ईलम बाजार क्षेत्र में जाना पडा | 21 फरवरी 2007 , उस रात को जो मेरे साथ हुआ वो मेरे जीवन का सबसे बड़ा अनुभव है | वही अनुभव मैं आपसे साझा करना चाहता हूँ |
प्रथम दृश्य
(मंच पर हल्का प्रकाश | एक कमरे का दृश्य जहाँ एक खाट पर बिस्तर, मेज, कुर्सी और मेज पर रखा हुआ एक खुला सूटकेस | कथावाचक के साथ एक ग्राम्य व्यक्ति )
कथावाचक : अच्छा इस क्षेत्र में एक मात्र फॉरेस्ट रेस्ट हाउस क्या यही है ?
चौकीदार : जी बाबू, यही एक है |
कथावाचक : और पास में ये तीन और बंगले ? इतने घने जंगल में चार बंगले हुबहू एक ही तरह के (आश्चर्य के स्वर में )
चौकीदार : बाबू ये चारों बंगले अंग्रेजों ने बनाये थे | करीब डेढ़ सौ साल पहले यहाँ नील की खेती होती थी | ये चारों अंग्रेज साहब नील का व्यापार करते थे |
कथावाचक : हाँ जानता हूँ | बंगाल और बिहार के कई क्षेत्रों में जोर-जबरदस्ती नील की खेती कराई जाती थी | ये मैंने ‘नीलदर्पण’ नाटक में पढ़ा था | तुम क्या इसी इलाके के हो ?
चौकीदार : जी बाबू हम तो इसी गाँव के हैं | और बचपन से ही नील खेती की बातें बाप-दादा से सुनते आ रहे हैं |
कथावाचक : अच्छा रामचरण | तुम्हारा नाम यही बतलाया था न ? आज रात खाने की व्यवस्था के बारे में तो मुझे संदेह लगता है |
चौकीदार : बाबू यहाँ तो होटल वगैरह कुछ नहीं हैं चाय और छोटे-मोटे नाश्ते की कुछ दुकानें है पर वे भी अँधेरे के बाद बंद हो जाती है | आप अनुमति दें तो अपने घर से कुछ ले आऊँ ?
कथावाचक : हाँ इसमें मुझे तो कोई असुविधा नहीं है पर बना बनाया कुछ है या फिरसे बनाना होगा ? फिरसे बनाने की तकलीफ मत करना |
चौकीदार : अरे नहीं बाबू | मेरी घरवाली ने खाना बना कर रखा होगा | साग सब्जी ना भी हो तो दाल के साथ कुछ रोटियां ले आऊंगा |
कथावाचक : ठीक है, वैसे भी बहुत भूख लग रही है आज तुम्हारे घर का खाना ही खाता हूँ |
चौकीदार : ठीक है बाबू मैं अभी हाल बोलता हूँ |
कथावाचक : ठीक है तो फिर जाओ |
(चौकीदार का बहिर्गमन और उसके साथ ही मंच पर अन्धकार )
द्वितीय दृश्य
( फिरसे मंच पर हल्का प्रकाश | कथावाचक खाने में मग्न है | पास में चौकीदार खड़ा है )
कथावाचक : वाह ! रामचरण पेटभर खाया | तुम्हारी घरवाली को मेरी तरफ से धन्यवाद जरुर देना |
चौकीदार : जी बाबू | सुबह चाय क्या सात बजे ले आऊँ ?
कथावाचक : आठ बजे लाओ | लम्बी यात्रा कर के आया हूँ आराम से उठूँगा | अच्छा एक मच्छरदानी मिलेगी ?
चौकीदार : मच्छरदानी तो नहीं है बाबू |
कथावाचक : ठीक है कोई बात नहीं | मेरे पास ओडोमस है वही लगा कर सो जाऊंगा |
चौकीदार : ठीक है बाबू चलता हूँ |
(चौकीदार का मंच से बहिर्गमन )
कथावाचक (कमीज उतार कर ओडोमस लगाते हुए ) : सरकारी नौकरी में भी कहाँ-कहाँ रुकना पड़ता है |
(कथावाचक बिस्तर पर लेट जाता है और मंच पर अन्धकार हो जाता है )
तृतीय दृश्य
(पार्श्व संगीत के साथ ही मंच पर हल्का प्रकाश | एक अंग्रेज व्यक्ति की आकृति दिखाई पड़ती
है | एक तरफ कथावाचक सोता दिखाई पड़ता है | संगीत चलते समय अंग्रेज मंच पर पाइप पीते हुए धीरे-धीरे टहलता है | संगीत समाप्त होते ही वह एक बड़ी आराम कुर्सी पर बैठ जाता है | ऐसे में मंच पर कई पुराने समय का सामान दिखाई देता है | ऐसे में कथावाचक की नींद टूटती है | इसके साथ ही मंच पर प्रकाश बढ़ जाता है )
कथावाचक (कांपते हुए स्वर में ) : तुम कौन हो ? मेरे कमरे में कैसे आ गये ? अरे रामचरण,रामचरण ! ये कौन घुस गया है घर में ? अरे मेरा सूटकेस कहाँ गया ? ये सब चीज़ें कैसे आ गयी कमरे में ?
(चिल्लाते हुए वो दरवाजा खोलने का प्रयत्न करता है पर खोल नहीं पाता | आतंकित होकर वह कमरे के एक कौने में बैठ जाता है | दूसरी तरफ आराम कुर्सी पर अंग्रेज पाइप पीता है और पास में बैठे अपने पालतू कुत्ते पर हाथ सहलाता है )
(कथावाचक के क्षेत्र में अंधकार हो जाता है और अंग्रेज के ऊपर स्पॉट लाइट )
अंग्रेज (गंभीर स्वर में ) : क्या गलती की | सच में मैंने कितनी बड़ी गलती की | जेम्स चला गया, पैट्रिक भी चला गया,यहाँ तक कि एडमंड भी चला गया | वही एडमंड जो हम सबको बोलता था कि वीर की तरह सारी परिस्थितियों का मुकाबला कर के यहाँ बीरभूम में रहेगा | वो एडमंड भी देश लौट गया | यहाँ रह गया तो मैं अकेला | हम चारों की दोस्ती ब्रिटेन से शुरू होकर बीरभुम तक चली | लेकिन एक तरफ मलेरिया और दूसरी तरफ नील किसानों का बढता हुआ उपद्रव | किसका कितना मुकाबला करें | पर मुझे चाहिए था पैसा, और पैसा | नील व्यापार में कितने ब्रिटिश उतरे थे ? उँगलियों में गिन सकते हैं | सब तो कलकत्ते के White Town, बॉम्बे,मद्रास में हैं | ऐसे ईश्वर-परित्यज्य इलाकों में रहने के लिए जो हिम्मत चाहिए वो कितने ब्रिटिश में है ?
(पाइप का कश लेते हुए ) मैं बचपन से ही दुस्साहसी था पर एक सामान्य accountancy की degree लेकर देश में भी क्या कर लेता | इसीलिए कमर कस के अपना भाग्य खुद बनाने यहाँ चला आया | पर इसमें भी क्या मेहनत कम की ? पहले एक स्कॉटिश नील व्यापारी के यहाँ मैनेजरी करी और फिर खुद जमींदार बन गया | बहुत पैसा कमाया पर क्या-क्या खोया | माता-पिता के दुनिया छोड़ने पर भी वहां न पहुँच सका | छोटी बहन लम्बी समुद्री यात्रा करके यहाँ छ्ह महीने के लिए आई और मलेरिया से आक्रांत हो कर इस परदेश की मिट्टी में समाधिश्थ हो गयी | और एल्बर्टा, जिस एल्बर्टा को सालों से मैं मन ही मन अपनी संगिनी मानता था उसने कितने साल मेरा इन्तजार किया | पहले मैंने कहा था की सिर्फ पांच साल के लिए जा रहा हूँ | पांच साल में इतना कमा लूँगा जितना देश में रहकर सारे जीवन में संभव नहीं होगा और कमाया भी | वो तो यहाँ आने के लिए भी राजी हो गयी थी पर कौन पिता अपनी बेटी को ऐसी जगह भेजेगा | कंपनी की नौकरी होती तो अलग बात है | एल्बर्टा के जीवन से चले जाने के बाद मेरे जीवन में शून्यता छा गयी | जेम्स, पैट्रिक,एडमंड – ये लोग अच्छी तरह समझते थे किस हद तक व्यक्ति हो जाना चाहिए | उन्होंने सही समय पर देश लौट कर वहाँ अपने-अपने व्यापार शुरू किये | और मैं | हा हा हा ! और पैसा, और पैसा कर के यहीं फंसा रहा | ( पाइप का कश लेते हुए ) मैं किसी भी रिश्तेदार के कभी कोई काम नहीं आया | इतना पैसा कमाने पर भी | क्या मुंह लेकर देश लौटता | वो लोग मुझे स्वार्थी और दंभी ही समझते जो कि बचपन से समझते ही आये थे | सालों किसी को चिट्ठी तक नहीं लिखी | मेरी यह छवि अब तो उनके मन में और भी पक्की हो गयी होगी | (पाइप का कश लेते हुए ) अब तो कई सालों से मेरा साथी यह रॉकी ही है (पास में बैठे कुत्ते को गोद में ले लेता है |) कलकत्ता से डॉक्टर बुलवाया,वो दवाई भी दिया, पर उससे क्या हुआ ? आज सात दिन से मेरा सारा शरीर अंगारों की तरह तप रहा है |
(रोते हुए स्वर में )
माँ, जब बचपन में मुझे बुखार होता था तब कैसे तुम घंटों मेरी सेवा करती थी | आज वो सब मुझे बहुत याद आ रहा है | दो-चार दिन में मेरी मृत्यु निश्चित है |
(हँसते हुए )
सच, हिन्दुस्तान में ब्रिटिश साम्राज्य का अगर कोई मुकाबला कर सकता है तो वह है मलेरिया | कितने सैंकड़ों ब्रिटिश इस मलेरिया के शिकार हो गये |
(कुत्ते को सहलाते हुए )
मेरे बाद तेरा क्या हाल होगा रे रॉकी ? मेरे प्रति इलाके के लोगों के मन में जो गुस्सा है उससे तो लगता है की ये लोग तुझे दौड़ा-दौड़ा कर मारेंगे | नहीं | मैं तुझे उन लोगों के हाथ नहीं आने दूंगा | मैं तुझे अकेले यहाँ मरने के लिए नहीं छोडूंगा |
(पास की मेज की दराज से एक रिवाल्वर निकालता है | उस रिवाल्वर को रॉकी की ओर लगाता है )
Praise the lord !
(यह बोल कर गोली चला देता है | फिर वह रिवाल्वर धीरे-धीरे अपने कान के पास रख कर कहता है )
Praise the lord ! Praise the lord !
(गोली चलती है और मंच पर इसी के साथ अन्धकार )
(फिर से हल्के प्रकाश के साथ मंच पुरानी स्थिति में | कथावाचक के ऊपर स्पॉट लाइट )
कथावाचक : यह मैंने क्या देखा ! क्या यह मेरे मन की भ्रान्ति थी या कोई स्वप्न या भुताहा अनुभूति ? डेढ़ सौ साल पहले कोई अंग्रेज नील व्यापारी यहाँ रहता था और मैं उसके जीवन के अंतिम कुछ मुहूर्तों का साक्षी बना | सच | हम सब कितनी जगह रहते हैं, कितनी ही जगह जाते हैं | पर क्या कभी हमारे मन में आता है कि वह स्थान कितने सुदीर्घ इतिहास का नाट्यांगन है | कितने हजारों लोग वहां रहे है और एक-एक व्यक्ति की एक-एक कहानी है | आज मैं यदि ये बोलूं कि मैं डेढ़ सौ साल पहले के नील युग का साक्षी हुआ तो क्या कोई मुझ पर बिश्वास करेगा ? मुझे तो नहीं लगता |
[ समाप्त ]