पैरिस हाउस रहस्य
लेखक:विनायक लोहनी
प्रथम दृश्य :
( कैरम खेलते हुए चार जन बालक )
प्रथम बालक – ये भी हार गये तुम लोग | इसे लेकर सारे दिन में छह बार हार गये हो |
द्वितीय बालक – अरे हट, ऐसे पार्टनर को लेकर क्या कोई खेल सकता है | मुझे अब मज़ा नहीं आ रहा है |
तृतीय बालक – ठीक है, खेल छोड़ | पर तूने तो कहा था कि आज तेरे ताउजी आयेगे | वो तो आये नहीं | बाहर
इतना ठंडा है , निकलने की इच्छा नहीं कर रही | ऐसे में तेरे ताउजी से कहानी सुनने को
मिलती तो बढ़िया मज़ा आता |
द्वितीय बालक – ताउजी जब बोले हैं आयेगे तो जरुर आयेगें ही | हाथीबागान से बोसपुकुर आने में टाइम तो
लगेगा ही |
तृतीय बालक – अच्छा,तेरे ताउजी इतनी सारी कहानियाँ इतने बढ़िया ढंग से सुनाते हैं | उन्होंने ये सब पढ़ी या
सुनी कहा से ?
द्वितीय बालक – अरे तुम लोग भूल जाते हो | पहले भी बताया है ताउजी देश के कई सारे हिस्सों में नौकरी किये
हैं और लम्बे अर्से एक हॉस्टल के वार्डन भी रहे हैं | हॉस्टल के बच्चों को कहानियां सुनाते सुनाते
उनका एसा अभ्यास हो गया है | अच्छा जानते हो ताउजी को कितनी कहानियां आती हैं ?
चतुर्थ बालक – हाँ , 1800 |
द्वितीय बालक – हाँ ठीक , 1800 |
तृतीय बालक – 1800 ! बाप रे बाप |
द्वितीय बालक – और क्या ? पंचतंत्र, हितोपदेश, महाभारत, अरेबियन नाइट्स, एसप्स फैबल्स, इन सबके
अलावा कितनी सारी हिंदी, मराठी, दक्षिण भारतीय कहानियां भी आती हैं ताउजी को | और
बांग्ला की तो बात ही छोडो |
(बाहर से ताउजी की आवाज़ )
ताउजी (अभी दृष्टिगोचर नहीं ) – क्यों कैसे हो तुम लोग ?
द्वितीय बालक – लो ताउजी आ गये |
तृतीय बालक – अब मज़ा आएगा |
(ताउजी का प्रवेश )
ताउजी – आज 10 बजे ही भात खा लिया था उसके बाद ही चाय पीते-पीते पंडित रविशंकर का एक रिकॉर्ड
बजाकर सुनने लगा | सच बताऊ तो जिस दिन से रविशंकर प्रयात हुए उस दिन से उनका भाव लेकर
ही रह रहा हूँ |
द्वितीय बालक – आपकी उनसे मुलाक़ात भी हुई थी ना ?
ताउजी – हाँ उनसे दो-एक बार नमस्कार-चमत्कार हुआ था | उनके शो तो कई सारे देखे थे और एक प्रकार से
उनसे ही जुडी हुई एक घटना आज याद आ गयी जो कि तुम लोगों को सुनाउगा |
प्रथम बालक – तो क्या भूत की कहानी नहीं होगी ?
ताउजी – भूत ! अच्छा, तुम लोगों को लगता है भूत के बिना कहानी नहीं हो सकती | पिछले महीने जुम्मन शेख
और अलगू चौधरी की कहानी सुनाई थी उसमें क्या भूत था ? फिर भी आज जो तुम्हे सुनाउगा उसमे
भूत नहीं भी हो तो भी उस तरह का कुछ मिलेगा |
चतुर्थ बालक – तो फिर देरी कैसी शुरू हो जाइये |
ताउजी – अरे रुको,रुको | पहले एक कप गरम चाय तो पीने दो | बेटा फटीक , एक कप चाय ले आओ बढ़िया
वाली | अब मन लगाकर सुनो | शुरू से कहानी नहीं होगी | तुम लोग तो जानते हो, मैं शास्त्रीय संगीत
का भक्त हूँ | सबसे पहले होता है आलाप और धीरे धीरे राग बंधता है | इसलिए आज जब रविशंकर
का नाम ले ही लिया है ,तो कुछ बात तो उनको लेकर बोलनी ही पड़ेगी | और तब तक चाय भी आ
जाएगी | अच्छा बताओ रविशंकर के बड़े भाई का क्या नाम था ?
द्वितीय बालक – उदयशंकर |
ताउजी – राईट | और उदयशंकर अपने विख्यात डांस ट्रूप का सदस्य बनाए थे 10 साल के रवि को | हो सकता
है अपने बड़े भाई की तरह नृत्य शिल्पी ही हो जाते रवि भी | लेकिन सितारवादक गोकुल नाग के
संस्पर्श में आना रवि के जीवन को बदल दिया | उनके पास ही रवि ने सितार का प्रथम पाठ सीखा |
मैं 1930 के दशक की बात बोल रहा हूँ | उस समय रवि को बहुत प्रेरणा मिली महान संगीतकार
अमियकांत भट्टाचार्य से | अच्छा,कोई बता सकता है रविशंकर ही के समतुल्य एक और महान
सितारवादक का नाम ?
(सब बालक चुप रहकर एक दुसरे की तरफ देखते हैं )
ताउजी – जानते नहीं हो ना | उस्ताद विलायत खां साहब | इन्ही विलायत खां साहब के पिता उस्ताद
इनायत खां साहब से सितार सीखना चाहते थे रवि | लेकिन मनुष्य के भाग्य में जो लिखा है उसे
बदलेगा कौन | रवि टाईफाईड से कई महीने बीमार रहे और खां साहब दुनिया छोड़ के चले गये |
रवि की उस्ताद साहब से सितार सीखने की इच्छा मन ही में रह गयी |
(चाय हाथ में लेकर फटीक का प्रवेश )
प्रथम बालक – अरे ताउजी बहुत हो गयी जनरल नॉलेज | अब तो कहानी शुरू करो |
ताउजी – थोडा सब्र कर | मेरी इन बातों के बीच कब कहानी का प्लाट शुरू हो जायेगा पता भी नहीं पड़ेगा |
इसलिए बोल रहा हूँ मन लगाकर सुने जा | उदयशंकर अपने एक पाश्चात्य दौरे पर मैहर के उस्ताद
अलाउद्दीन खां साहब को ले गये | वही उन्होंने रवि को उस्ताद जी से संगीत सीखने को कहा | उस्ताद
जी ने रवि को सिर्फ वाद्य की शिक्षा न दे कर संगीत सागर में डुबो दिया | बस फिर क्या, दौरे से
लौटकर अगले 5 साल रवि मैहर में ही रह गये | मैहर कहाँ है मालूम है किसी को ? नहीं मालूम नां |
इलाहाबाद से बम्बई जो रेलपथ गया है उस पर इलाहाबाद और जबलपुर के ठीक बीचों –बीच है
मैहर | मध्यप्रदेश के सतना जिले में | वहाँ देवी का एक विख्यात मंदिर भी है | तब तो एक छोटा सा
गाँव था मैहर | अब मैं बताता हूँ मैंने रविशंकर को सबसे पहले कहाँ देखा | विख्यात सितारवादक
उस्ताद मुस्ताख अली खां ने रवि को सबसे पहले बनारस में सुना था | वे इतने प्रभावित हुए कि
उन्होंने कलकत्ता में अपने शिष्य रतन सरकार के बउबाज़ार स्ट्रीट के घर पर एक अनुष्ठान आयोजित
किया | शहर के धुरंधर संगीतकारों के सामने तब सबसे पहले बजाया था रवि ने | ये है साल 1943 |
उसी साल बंगाल में गणनाट्य आन्दोलन भी शुरू हुआ जो कि बंगाल के सांस्कृतिक इतिहास में
युगांतकारी पर्व तो था ही बल्कि सारे देश के सांस्कृतिक जीवन पर भी गहरा प्रभाव डाला था | ये
रतन बाबू मेरे नानाजी के बाल्य बंधू थे | बस तो फिर क्या मैं भी नानाजी के साथ वहां पहुच गया |
मेरी उम्र उस समय क्या होगी , यही कोई 8-9 साल | मेरे मन में अभी भी वो तस्वीर स्पष्ट है पीला
धोती कुर्ता पहनकर रविशंकर आँखे बंद कर के सितार बजा रहे थे | पूरे पीताम्बर कृष्ण लग रहे थे |
जैसे श्री कृष्ण वंशी बजाकर सबको मोहित करते थे, कुछ एसा ही जादू रविशंकर भी कर रहे थे |
नानाजी के कारण कलकत्ता के शास्त्रीय संगीत के खेमे में मेरी एक पहुँच थी , बैकडोर एंट्री जिसे
बोलते हैं | धर्मतला के नामी संगीत वाद्य निर्माता कानाइलाल और नोदेरचंद मल्लिक के साथ भी
मेरा परिचय था | उन्होंने ही रविशंकर का विश्वविख्यात सितार बनाया था | वो एक विशेष तरह का
सितार था | ठीक प्रथागत सितार नहीं , सितार और सुरबहार का एक मिश्रण था, जिसको बोला
जाता था खराज पंचम युक्त सितार | रविशंकर सबसे पहले ऐसा सितार बनवाए थे लखनऊ के प्रसिद्ध
सितारवादक और सितार निर्माता युसूफ अली खान से | उसके बाद बनवाए कानाइलाल और
नोदेरचंद मल्लिक से | कानाइलाल की तरह ही एक और विख्यात संगीत वाद्य निर्माता थे रायचंद
बाबू |
(ताउजी चाय की चुस्की लेते हैं )
खैर, आज जो घटना तुम्हे सुनाने जा रहा हूँ वो है रायचंद बाबू के पोते मोहित को ले कर | मोहित मेरे
साथ बागबाजार विद्यापीठ में पढ़ता था | मोहित के साथ स्कूल के दिनों से ही मैंने कई एडवेंचर किये
थे | हम लोगों की एक विशेष रूचि थी seance करने में | Seance मालूम है ? किसी अशरीरी आत्मा
को किसी शरीरी मीडियम में प्रवेश कराना और उसके माध्यम से उससे बातचीत करना | जो घटना
मैं सुना रहा हूँ वो 1963 की है | तब मैं पूना में डेक्कन कॉलेज में B.SC mathematics का पार्ट
टाइम लेक्चरर था | दुर्गा पूजा के समय कलकत्ता आने पर मोहित से भेंट हुई | उसने अल्मोड़ा जाने
का प्रसंग उठाया | अब मैं जो बोलूँगा उसे मन के पर्दे पर नाटक या सिनेमा की तरह चलाओ |
द्वितीय दृश्य :
मोहित – तो बोल, दशमी के बाद पांच दिन निकाल पायेगा या नहीं ?
त्रिलोचन – अल्मोड़ा ? वहाँ क्या काम पड गया है ?
मोहित – काम तो है | पर अल्मोड़ा जा कर नैनीताल और रानीखेत भी हो आयेंगे | असल में अल्मोड़ा जा के
एक व्यक्ति के बारे में खोज करनी है | जासूसी बोल सकता है |
त्रिलोचन – मामला क्या है ? साफ साफ बोल |
मोहित – सुनकर तुझे अजीब लगेगा | मेरे दादाजी रायचंद बाबू के बारे में तो तुझे पता ही है | वाद्ययंत्र बनाने
में उनका सारे देश में नाम है | बड़े बड़े उस्ताद लोग दादाजी से अपने इंस्ट्रूमेंट्स बनवाते थे |
संगीतकारों के अलावा कुछ शौकीन ग्राहक भी थे दादाजी के | इनमे से एक थे इलाहाबाद हाई कोर्ट के
बैरिस्टर आशुतोष दत्त चौधरी महाशय | ये दत्त चौधरी महाशय दो-तीन बार कुछ आर्डर दिए थे
दादाजी को | दादाजी की इनसे कुछ बहुत ज्यादा घनिष्टता तो नहीं थी बस इतना जानते थे कि वे
इलाहाबाद में एक सफल वकील हैं और वे उच्च श्रेणी के संभ्रांत व्यक्ति हैं इसे लेकर उन्हें कोई संदेह नहीं
था | करीब 1913 साल में ये दत्त चौधरी महाशय एक विशेष तरह का मँहगा सितार बनाने का आर्डर
दादाजी को दिए | प्रति बार की तरह इस बार भी पता दिया था 15, Bright End Corner,
Almora | यद्यपि प्रत्येक बार वे कलकत्ता आ कर स्वयं आर्डर रिसीव करते थे परन्तु इस बार वे नहीं
आये | हर बार की तरह उस बार भी उन्होंने फुल पेमेंट पहले ही कर दिया था | उस समय के उच्च श्रेणी
के भद्रजन एडवांस बैलेंस के चक्कर में जाते ही नहीं थे | वे तो पूरा पेमेंट एक साथ कर दिया करते थे |
लम्बा समय निकल गया दत्त चौधरी महाशय सितार लेने आये ही नहीं | दादाजी ने भी सोचा कि
किसी व्यक्तिगत या पेशागत समस्या के कारण दत्त चौधरी महाशय कलकत्ता नहीं आ सके | काफी
समय बाद किसी सम्पर्कसूत्र से उन्हें पता लगा कि दत्त चौधरी महाशय परिवार सहित एक रोड
दुर्घटना में चल बसे हैं | उनके बाकि परिवार के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी | इस कारण से
वह सितार हमारे ही यहाँ पड़ा रहा | अब मैं जो बोलूगा वह सुनकर तू हसेगा |
त्रिलोचन – अरे बोल ना, मैं इतनी आसानी से किसी बात पर नहीं हँसता हूँ |
मोहित – दादाजी की उम्र अब 90 हो गयी है | अधिक समय अपने कमरे में ही रहते हैं | कुछ दिन पहले उन्होंने
मुझे बुलाकर कहा कि एक सपना उन्हें कई दिनों से विचलित कर रहा है |
त्रिलोचन – सपना ?
मोहित – हाँ, सपना | दादाजी को बीच बीच में सपने में वो सितार आ जाता है | दत्त चौधरी महाशय का
चेहरा तो उनको उतना याद नहीं है पर एक मुखाकृति सपने में आती है | और दत्त चौधरी महाशय के
फुल पेमेंट के रसीद की काउंटर-कॉपी सपने में आती है | जब चार पांच बार दादाजी को यह सपना
डिस्टर्ब किया तब उन्होंने मुझे बुलाकर कहा कि उस सितार का फुल पेमेंट लेने के बाद भी वह हमारे
पास पड़ा है इसीलिए यह सपना बार बार आ रहा है | दादाजी मुझे बोले कि इलाहाबाद या जरुरत
पड़े तो अल्मोड़ा जा कर दत्त चौधरी महाशय के वंशधरों की खोज करूँ और किसी का भी यदि पता
चले तो उसे यह सितार देकर मामला समाप्त करूँ | तो मैं दादाजी को बोला कि इस समय दो-दो जगह
जाना मेरे लिए संभव नहीं होगा | हाँ, दशमी के बाद अल्मोड़ा जा सकता हूँ | अभियान यदि यहाँ
विफल भी हुआ तो भी पहाड़ घूमना तो ही जायेगा | वैसे भी अल्मोड़ा नैनीताल घूमने की इच्छा
बचपन से ही थी, विशेष कर के Corbett की ‘Man-Eaters of Kumaon’ पढ़ने के बाद | अब
बताओ चलते हो ना ?
त्रिलोचन – कुमाऊँ घुमने का मौका तो छोड़ना नहीं चाहिए | पर एकादशी के समय रेल टिकिट मिल सकेगा
क्या ?
मोहित – वो चिंता छोड़ | बड़े भैया के ससुर ईस्टर्न रेलवे में जोनल मेनेजर हैं | उनका इमरजेंसी कोटा कर के
कुछ होता है | मैं अकेले तो जाता नहीं इसलिए उन्हें बोल के रखा था कि दशमी के एक-दो दिन बाद
2 बर्थ लगेंगी | उन्होंने कहा एक-दो दिन पहले बता देना, हो जायेगा | अब तो सिर्फ गरम कपडे
निकाल कर तैयार हो जा |
त्रिलोचन – मैं आज ही न्यू मार्केट जा कर कुछ गरम कपडे लेकर घर लौटूंगा |
मोहित ( जोर से बोलते हुए ) – ये हुई ना बात | तो फिर अल्मोड़ा आ रहें हैं हम |
त्रिलोचन – बिलकुल |
तृतीय दृश्य :
ताउजी – इस तरह हम लोग अल्मोड़ा पहुँच गये | अक्टूबर के महीने में अल्मोड़ा में ठण्ड कम नहीं थी | समुद्र
तट से 5500 फीट की ऊँचाई पर बसा है अल्मोड़ा | हम लोगों ने जा कर एक लॉज में कमरा लिया |
ज्यादा चॉइस भी नहीं थी, अच्छे होटल सारे फुल booked थे | रहने, खाने, पहनने को वैसे भी मैंने
कभी ज्यादा महत्त्व नहीं दिया | इसलिए मज़े में था | पहले थोडा काम कर लिया जाए, इसलिए नहा
धो कर 15, Bright End Corner की खोज में निकल लिए | पहुँचते ही देखा कि बाहर गेट पर सात
लीवर का एक अलीगड़ी ताला हमारी तरफ देख रहा है | घर के साथ एक बगीचा था | गेट से करीब
15 मीटर अन्दर घर था | घर का सारा रंग उड़ा हुआ था और बगीचे का हाल बेहाल था | सब झाड़ी
झुरमुट 8-10 फीट तक उठे हुए थे | कुल मिलाकर सांप कीड़ों के लिए एक आदर्श परिवेश था | देखते
ही समझ में आ रहा था कि एक युग से कोई यहाँ नहीं रह रहा है | मेंटेनेंस का कोई नामो निशान नहीं
था | स्थानीय लोगों से पूछने पर पता लगा कि इस घर को फरासी बंगला कहा जाता है | इससे ज्यादा
कोई कुछ बता नहीं सका | इसके बाद एक-दो sights देखने के बाद हम लोग लॉज में लौटे | दोपहर में
खाने के बाद मैनेजर से फरासी बंगले के बारे में पूछ कर यह पता लगा कि लॉज से लगी हुई पुरानी
गली में एक हालदार महाशय नाम के एक सज्जन रहते हैं जो कि लम्बे समय से अल्मोड़ा के bengali
association के अध्यक्ष रहें हैं और यहाँ की दुर्गा पूजा का दायित्व भी प्रधानतः इनके ऊपर रहता है |
उनकी उम्र करीब 60 है और वे बचपन से अल्मोड़ा में रह रहे हैं | सुन के लगा कि इनसे तो मिलना ही
पड़ेगा | ये जरुर कुछ 15, Bright End Corner फरासी बंगले के बारे में कुछ बता सकेंगे| वे दोपहर
में शायद आराम कर रहे हों, ये सोच कर हमने यह तय किया कि 5 बजे हम उनसे मिलने जायेगे |
चतुर्थ दृश्य :
हालदार महाशय – फरासी बंगला, पैरिस हाउस | बहुत दिनों से कुछ सुना नहीं वहाँ के बारे में | एक समय
कितने किस्से, अफवाह सुनते थे वहाँ के बारे में | फरासी साहब की आत्महत्या के बाद |
त्रिलोचन – आत्महत्या !
हालदार महाशय – हाँ फरासी साहब आत्महत्या किये थे विष खाकर | नौकर अगले दिन बैठकखाने में एक
Easy-Chair पर उनकी लाश देखा | पुराने कब्रिस्तान में उनको कब्र दी गयी | चूंकि उनके
आगे-पीछे के रिश्तेदारों का पता नहीं था इसलिए चर्च के पादरियों ने ही उनके अंतिम
संस्कार किये | साहब की उम्र कितनी होगी | यही कोई 27- 28 | तब तो मेरी उम्र 13-14
थी | हम दोस्त लोग अक्सर उन्हें पहाड़ी रास्तों पर Horse – Riding करते देखते थे |
ज्यादा अंग्रेजी तो तब हमें आती नहीं थी, उन्हें हम ‘Good Morning’,’Good Evening’
बोला करते थे | वे भी अत्यंत भध्रता के साथ हमें greet करते थे | क्या सुन्दर थे साहब – 6
फुट 3 इंच का कद, लम्बे बाल, गोरा मुख – एक अत्यंत आकर्षनीय appearance थी
साहब की |
मोहित – वो सब तो ठीक है लेकिन क्या आप आशुतोष दत्त चौधरी के बारे में कुछ बोल सकेंगे ?
हालदार महाशय – नहीं, वो तो नहीं मालूम | बाबा से सुनता था कि एक बंगाली सज्जन फरासी बंगले में कुछ
समय रहे थे | संभवतः उन्होंने ही ये घर फरासी साहब को बेचा होगा |
मोहित – तो फिर ये दत्त चौधरी महाशय के बारे में, उनके वंशजों के बारे में, बता सके एसा कोई भी नहीं है
अल्मोड़ा में ?
हालदार महाशय – लगता तो नहीं है | उन्होंने यहाँ घर तो बनाया पर यहाँ रहे ही कितने दिन | और उनका
कोई सोसिअल सर्कल था ऐसा तो मुझे नहीं लगता |
त्रिलोचन – अच्छा, आपने जो बोला कि उस घर के सम्बन्ध में बहुत सी बातें, किस्से, अफवाहें प्रचलित थीं उस
बारे में थोडा बताएं |
हालदार महाशय – उस बंगले के बारे में ये धारणा थी कि वो एक भुताहा बंगला है | भूत का प्रकोप था वहाँ, ये
सब बातें | इन दिनों कोई भी वहाँ जाता है ऐसा मुझे तो नहीं लगता | बहुत साल पहले
कभी कभी ये सुनने में आता था कि फरासी साहब को वहाँ टहलते हुए कोई देखा | इसी
तरह ये भी सुनते थे कि कोई उन्हें सुबह सुबह Horse – Riding करते देखा | अब कौनसी
बात सच है कौनसी झूठ, कितनी सच है कितनी झूठ ये तो भगवान ही जाने |
त्रिलोचन – उस घर का नाम पहले से ही Paris House था और स्थानीय लोग उसको फरासी बंगला बोलते
थे, ऐसा ही ना ?
हालदार महाशय – हाँ लगता तो यही है | हमारे बचपन में उसे हम लोग तो Paris House ही बोलते थे |
लेकिन अधिकतर स्थानीय लोग फरासी बंगला बोलते थे |
त्रिलोचन – इन दिनों क्या कोई जाता है वहाँ ?
हालदार महाशय – दिन के समय हो सकता है कुछ छोकरे घूमते हों | वहाँ की महँगी lighting और
furniture तो पहले से ही गायब है | उस समय के अंग्रेज कलेक्टर साहब ने घर को सील
कर दिया था, और एक दरबान भी रखवाया था | अभी भी हो सकता है नाम के लिए कोई
हो, और कोई मजे से वेतन उड़ा रहा हो | लेकिन रात में कोई वहाँ जाता होगा ऐसा मुझे
बिलकुल नहीं लगता | 4-5 साल पहले फिर सुना गया था कि किसी ने साहब को घोड़े पर
उठते देखा | कुल मिलाकर वहाँ की पूरी reputation एक भुताहा बंगले जैसी है |
त्रिलोचन (मोहित की ओर देखने के बाद ) – आपका बहुत समय लिया बहुत कुछ रोचक जानने को मिला
आपसे |
हालदार महाशय – खूब ज्यादा नए लोगों से यहाँ परिचय नहीं होता इसलिए आप लोगों के आने से अच्छा ही
लगा | अभी कुछ दिन तो रहेंगे ना अल्मोड़ा में ? वक्त मिले तो फिर आइयेगा | थोड़ी बैठक
होगी | अरे बंगाली हों, और अड्डा ना हो ऐसा क्या हो सकता है |
मोहित – अवश्य आयेंगे | तो फिर आज चलते हैं |
पंचम दृश्य :
मोहित – कल सुबह यहाँ कुछ और sights देख कर दोपहर को नैनीताल निकल चलते हैं | दो-एक दिन
नैनीताल में रहेंगे | छुट्टी थोड़ी बढ़ा ले | रानीखेत भी चलेंगे | गर्मी के समय आते तो पिंडारी ग्लेसिअर
की ट्रैकिंग करते |
त्रिलोचन – मेरा मन तो वो Paris House में लगा हुआ है |
मोहित – अरे छोड़ तो वो Paris House ! दादाजी क्या मालूम क्या सपना देखे और हम लोगों को लगा दिया
इस भूत बंगले के पीछे | अप्रैल का महीना होता तो लगता कि अप्रैल फूल बना रहे हैं |
त्रिलोचन – तेरी ना सच, Beaten Track में ही चलने की आदत है | थोडा सा कुछ Unpredictable हो जाये
तो तुझे क्या होने लगता है | अरे बचपन में अपन ने कितने एडवेंचर किये थे | जब हम यहाँ पहुंचे थे
तब क्या हमने सोचा था कि एक भुताहा बंगला हमे मिलेगा | जहाँ एक मृत फरासी साहब कि
अशरीरी आत्मा Horse-Riding करती है | ये सब माल मसाला जो है उसमे तो जबरदस्त एक
रहस्य-रोमांच उपन्यास हो सकता है और ये सब सुनकर मेरी imagination एक जोरदार किक पा
रही है |
मोहित (हँसते हुए ) – तू एक काम कर 10-15 साल अच्छे से कुछ पैसे जमा कर | फिर इस Paris House को
खरीद | फिर तू ही यूरोपीय पौषाक में लम्बे बालों का एक विग पहन कर अँधेरे में एक
घोड़े पर निकल जा | सब कहेंगे फरासी साहब फिर आ गये |
त्रिलोचन – 10-15 साल बाद क्या करूँगा ये तो नहीं पता हाँ, आज रात क्या करूँगा ये आईडिया आ रहा है
दिमाग में |
मोहित – अब क्या बोल रहा है |
(त्रिलोचन हँसता है )
मोहित – देख भाई, तेरी कोई उल्टी-सीधी प्लानिंग में मुझे तो छोड़ दे | वैसे भी दिनभर आज पहाड़ी रास्तों पर
चलकर शरीर की एक-एक हड्डी दर्द दे रही है | मैं तो सीधे सोने जाऊंगा |
(त्रिलोचन फिर हँसता है )
मोहित – तेरी ये हंसी बंद कर और बता तेरे ऊपर अब क्या भूत सवार हुआ है ?
त्रिलोचन – भूत सवार हुआ है या वहां जा कर होगा ये तो आज रात को ही पता लगेगा | एक काम करते हैं
मोहित हम लोग तो पहले बहुत seance किया करते थे | क्यों ना आज वहां जा कर वैसा कुछ करें |
मोहित – मैं वहाँ नहीं जाऊंगा | तुझे जाना हो तो तू जा |
त्रिलोचन – अरे भाई एक भूत बंगले के इतने पास आ कर ऐसा मौका छोड़ दें | और तुझे तो मालूम है मेरा मन
हमेशा एडवेंचर का भूखा रहता है | जब तेरी इच्छा नहीं है तो मत चल मैं light dinner कर के
करीब 11 बजे वहाँ जाऊँगा | 3 बजे तक चले आऊंगा | सारी रात ठण्ड में जगे रहने की मेरी इच्छा
नहीं है | चलो मैं थोडा बाज़ार जाता हूँ | रात के लिए कुछ छोटी-मोटी preparation करनी हैं और
तू लॉज के दरबान को बोल देना रात में अन्दर से ताला ना लगा दे |
मोहित – तो तू जायेगा ही ?
त्रिलोचन – बिलकुल |
षष्टम दृश्य :
( पार्स्व संगीत के साथ त्रिलोचन का अँधेरे में प्रवेश | संगीत समाप्त होने पर त्रिलोचन एक चटाई फैलाता है | टोर्च की रौशनी से सारे कमरे को देखता है | अपने बैग से एक छोटा बैट्री लैंप निकालता है | अपने ऊपर तेल मलता है और आस पास एक स्प्रे मारता है | कुछ देर बैठे रहता है | अचानक मोहित की आवाज बाहर से आती है “त्रिलोचन, त्रिलोचन” | मोहित यह कहते हुए कमरे में घुसता है | )
त्रिलोचन – तू यहाँ ?
मोहित – तुझको क्या अकेले छोड़ सकता था ?
(दोनों एक दूसरे के कंधे पर हाथ रखते हैं |)
त्रिलोचन – आ बैठ, सैंडविच लाया हूँ, फ्लास्क में कॉफ़ी है थोडा खा पी ले |
मोहित – तू तो seance करने की बात बोला था |
त्रिलोचन – सच में करना चाहता है क्या ?
मोहित – लॉज में अकेले अच्छा नहीं लग रहा था | अब जब यहाँ आ ही गये हैं तो देखें क्या होता है |
त्रिलोचन – तो फिर हो ही जाए |
( त्रिलोचन बैग से एक मोमबत्ती निकालता है और चटाई के पास रख देता है | दोनों ध्यान में बैठ जाते हैं | 30 सैकंड तक पार्श्वसंगीत |)
त्रिलोचन – Is anyone here ? is anyone here ?
मोहित – Yes, i am here .
( त्रिलोचन मोहित की ओर देखता है |)
त्रिलोचन – Who are you ?
मोहित – Whose house you have come to.
(अब बांग्ला में बोलते हुए)
जिसके घर तुम आये हो | आप तो बंगाली हैं, मुझे भी थोड़ी बांग्ला आती है | आप बांग्ला में ही बोलें
तो मुझे अच्छा लगेगा |
त्रिलोचन – आपको कैसे मालूम चला मैं बंगाली हूँ ?
मोहित – मैं तो कोई शरीर के अन्दर बद्ध नहीं हूँ | शरीर के सारे बन्धनों से मुक्त हूँ | मेरे लिए वो सब जान लेना,
कर लेना संभव है जो की शरीर में रहते हुए संभव नहीं |
त्रिलोचन – मैं क्या आपसे कुछ प्रश्न कर सकता हूँ ?
मोहित – बिना किसी संकोच के |
त्रिलोचन – आप तो एक फ्रेंचमैन हैं ना ?
मोहित – हाँ बोल सकते हो |
त्रिलोचन – मैं सुना हूँ आपके लम्बे बाल थे और आप घोडा लेकर पहाड़ी रास्तों पर घुड़सवारी करते थे |
मोहित – अरे वो तो एक युग पहले की बात है |
त्रिलोचन – अच्छा ये बात क्या सही है कि आपने आत्महत्या की थी ?
( मोहित के मुख पर गंभीर भाव आ जाते हैं | कुछ क्षण कोई जबाब नहीं )
मोहित – हाँ, स्वयं ही अपने प्राण लिए थे | वो जो जगह देख रहे हैं, वहां पर एक Easy-Chair रखी रहती थी
| वहीँ उस दिन वाइन में आर्सेनिक मिला कर पी गया था |
त्रिलोचन – उस समय आपकी उम्र कितनी थी ?
मोहित – 23 | मेरी उम्र याद रखना बहुत आसन है | 1900 में मेरा जन्म और 1923 में ये जगत छोड़ा |
गांधीजी ने जब अपना आन्दोलन वापस लिया उसके कुछ महीने बाद ही |
त्रिलोचन – ये घर आपने कब खरीदा ? इस घर के पुराने मालिक आशुतोष दत्त चौधरी की कोई स्मृति है आपके
मन में ?
( कुछ क्षण चुप्पी )
मोहित – कौन कहा मैंने ये घर खरीदा था | आशुतोष दत्त चौधरी मेरे पिता हैं |
त्रिलोचन – आपके पिता ?
मोहित – हाँ, मेरे पिता | इसीलिए तो मैं इस घर में रहता था | इस घर को लेकर मेरे बचपन की बहुत स्मृतियाँ
हैं | तब मैं फ़्रांस में एक बोर्डिंग स्कूल में पढ़ता था | छुट्टियों के समय यहाँ आता | एक महीना बाबा के
साथ रहता | अल्मोड़ा ही नहीं हम लोग अक्सर नैनीताल भी जाते थे घूमने | वहाँ lake पर बोटिंग
करते, मॉल रोड में घूमते | यहाँ हमारे बगीचे में कई घंटे बैठ कर हल्की धूप का आनंद लेते | मैंने
जितनी भी बांग्ला सीखी है सब बाबा से ही |
त्रिलोचन – पर हमें तो ये पता था कि आपके पिता का उनकी पत्नी और बच्चों के साथ एक Road Accident में
….
मोहित – देहांत हो गया था यही ना ? ये एकदम ठीक बात है | मेरे पिताजी 1896 से 1900 तक फ़्रांस में
रहे | तभी उनकी वहां मेरी माँ से मुलाकात हुई और विवाह हुआ | इस बात को फ़्रांस में कुछ जन के
अलावा किसी को पता नहीं है | माँ के माता-पिता बहुत कम उम्र में चल बसे थे | गरीब मामा ने माँ
का लालन- पालन किया | माँ बहुत ही गुणी महिला थीं | असाधारण वायलिन बजाती थीं | बाबा भी
संगीतप्रेमी थे | संगीत प्रेम ने दोनों का मेल कराया था | मैं बचपन से ही Mozart, Beethoven सुन
कर बड़ा हुआ हूँ | बाबा मेरी शिक्षा के लिए पैसे भेजते थे और उसी से मैं बोर्डिंग स्कूल में पढ़ता था |
बाबा भी प्रतिवर्ष फ़्रांस आते | 1913 में बाबा और मेरी यहाँ की फैमली – भाई विश्वतोष और
महीतोष और उनकी माँ जो की मेरे अस्तित्व के बारे में जानती तक नहीं थी सभी दुर्घटना में चल बसे
| बाबा की बाकी सम्पत्ति शायद उनके दूर के रिश्तेदारों को मिल गयी हो लेकिन ये घर बाबा ने
विशेष कर के मेरे और मेरी माँ के नाम कराया था | बाबा के प्रयात होने के बाद माँ भी एक बार मेरे
साथ यहाँ आई थीं | तब मेरी उम्र 15 साल थी | उसके 3-4 साल बाद माँ भी चल बसी | उसके बाद
मैं पूरी तरह अकेला हो गया | बड़ी मुश्किल से मैंने यूनिवर्सिटी पूरी की |
त्रिलोचन – इतनी सब बात मुझे बताये एक और प्रश्न क्या कर सकता हूँ ?
मोहित – बोलो |
त्रिलोचन – आपने आत्महत्या क्यों की ?
मोहित – माँ के जाने के बाद जब मैं पूरी तरह से अकेला हो गया था तब क्रिस्टीना ही मेरी एकमात्र सपोर्ट हो
गयी | मेरे साथ यूनिवर्सिटी में पढ़ती थी | मैंने तय किया था कि बीच-बीच में लम्बे समय अल्मोड़ा में
रहा करूँगा | संगीत और साहित्य का अभ्यास करूँगा | बांग्ला साहित्य भी और पढूंगा | पर क्रिस्टीना
को ये एकदम पसंद नहीं था | जब मैं यहाँ रहने लगा तब धीरे-धीरे हमारे बीच दूरी बढ़ने लगी | फिर
एक दिन एक चिट्ठी से पता लगा कि वो एक फ्रेंचमैन से विवाह कर रही है | उस दिन मैंने देर रात तक
Beethoven सुना | शोक संगीत ने अचानक मेरे मन को घेर लिया | मेरे अन्दर एक तरह का नियति-
बोध, sense of destiny जाग उठा | मुझे एहसास हुआ कि मेरे पिता और उनका यहाँ का सारा
परिवार, यहाँ तक मेरी जन्मदायिनी माँ, सभी की असामयिक मृत्यु हुई है | मेरे परिवार की यही
नियति है | इसे Beethoven के संगीत का प्रभाव बोलिए या कुछ और | मैं जीवन की व्यर्थता,
सारहीनता तीव्र रूप से अनुभव करने लगा | बस फिर उसी समय ( हल्का हँसते हुए ) वाइन में
आर्सेनिक | अब अवश्य समझ पाया हूँ कि शरीर ईश्वर का उपहार है | शरीर चले जाने से भी हमें मुक्ति
नहीं मिलती | सिर्फ अन्य गति मिलती है |
( कुछ देर चुप्पी )
उपहार की बात करते ही एक दूसरी बात याद आ गयी | तब मेरा तेरहवाँ जन्मदिन आने वाला था |
मेरे teenage में प्रवेश को बाबा celebrate करना चाह रहे थे | वे मेरा भारतीय शास्त्रीय संगीत से
परिचय कराना चाहते थे | इसलिए उन्होंने कलकत्ते से एक बढ़िया सितार बनवाया था | ये सब
उन्होंने मुझे चिट्ठी में लिखा था | पर मेरे जन्मदिन के पहले ही उनकी दुर्घटना हो गयी | मेरा यहाँ
आना भी नहीं हुआ और उपहार लेना भी नहीं |
त्रिलोचन ( रोमांचित हो कर ) – इसका मतलब वह सितार आपके लिए लिया गया था ! अरे वो तो हमारे पास
कलकत्ते में रखा है |
मोहित – क्या बोल रहे हैं ? क्या उस सितार को यहाँ रख जायेंगे | ठीक इस जगह पर |
त्रिलोचन – जरुर | मैं खुद अल्मोड़ा आ कर सितार को यहाँ Paris House में रख जाऊंगा |
मोहित – हा हा हा … Paris House | बाबा ने ये नाम Double Meaning में दिया था |
त्रिलोचन – Double Meaning ?
मोहित – और क्या | बाबा ने Paris शहर के नाम पर Paris House नहीं रखा था बल्कि वो था Pari’s
House माने पैरी का घर |
त्रिलोचन – अब ये पैरी कौन है ?
मोहित ( हँसते हुए ) – मैं | बाबा ने मुझे भारतीय नाम दिया था | बाबा का नाम था आशुतोष, मेरे दो बड़े भाई
विश्वतोष और महीतोष | और उसी छंद में बाबा ने मुझे नाम दिया परितोष और बाबा
मुझे पैरी कहकर पुकारते थे | बांग्ला में जिसे डाक नाम कहते हैं |
( एक भयंकर पार्श्वसंगीत गूंजता है और मंच पर पूरा अन्धकार )
त्रिलोचन – मोहित, मोहित, मोहित ! परितोष बाबू |
सप्तम दृश्य :
( त्रिलोचन हांफता हांफता लॉज के कमरे में पहुचंता है | कोई भी बिस्तर में कम्बल ओढ़ के सो रहा है | )
त्रिलोचन – तू यहाँ ?
मोहित (नींद से उठ कर ) – क्यों क्या हुआ ? तू कब लौटा ? वहाँ क्या हुआ ?
त्रिलोचन – इसका मतलब तू वहाँ गया ही नहीं ? ( एक भयंकर पार्श्वसंगीत के साथ मंच पर अंधकार | )
अष्टम दृश्य :
(ताउजी हँसते हैं| बच्चे सब रोमांचित)
द्वितीय बालक – इसका मतलब आप इतनी देर एक भूत के साथ ही बात कर रहे थे जो मोहित का रूप लेकर
बैठा रहा |
ताउजी – ऐसा ही तो लगता है | मोहित को लॉज में सोता देख मेरी जो हालत हुई वो मैं ही जानता हूँ |
प्रथम बालक – उसके बाद क्या किया ?
ताउजी – उसके बाद ? अगले ही दिन बोरिया बिस्तर बाँध के नैनीताल चले गये |
तृतीय बालक – और उस सितार का क्या हुआ ?
ताउजी – मोहित पहले-पहले मेरी बात बिलकुल भी विश्वास नहीं कर रहा था | फिर कुछ दिन मेरा चित्त
अशांत देख कर धीरे-धीरे मेरी बात पर विश्वास किया | लौट कर उसने अपने दादाजी को ये घटनाक्रम
तो नहीं बताया पर उसने यह सुझाव दिया कि सितार को Paris House में ही रख देना उचित होगा
| दादाजी ने भी यह बात मान ली और दिसम्बर की छुट्टियों में मैं और मोहित अल्मोड़ा गये और
दोपहर के समय वह सितार Paris House में रख आये | सच कहूँ तो दिन के समय के अलावा Paris
House में जाने की हिम्मत मेरी भी नहीं थी |
( ताउजी नमकीन मुंह में डालकर फिर बोले )
उसके बाद फिर कई बार अल्मोड़ा गया पर Paris House नहीं गया | सरकार ने उस मोहल्ले में फिर
से एक दरबान बहाल कर दिया था | स्थानीय लोगों से सुना की कभी-कभी वहाँ से सितार बजने की
आवाज आती है |
( सब बच्चे रोमांचित होकर एक दूसरे की तरफ देखते हैं | )
ताउजी – इस घटना के इतने साल बाद भी मोहित कभी-कभी मुझसे पूछता है कि Paris House की घटना
सच थी या एक कहानी कसी थी |
( सब बच्चे हँसते हैं | )
ताउजी – तो फिर ‘Story of the Month’ हो गयी | अब बेटा फटीक, तुम्हे क्या करना है ?
सब बच्चे एक साथ – ताउजी के लिए एक गरमा-गरम चाय |
[ समाप्त]